हर वक़्त रूह के आगे तम्मनाए बहती रहती है
जैसे रेगिस्तान में माटी बहती रहती है
उसे एहसास है की कुछ दुरी पे ही है मंज़िल मेरी
पर ये सिलसिला यूँही क्यों चलता रहता है !
बिना रुके बिना थके मंज़िल के इंतजार में बढ़ते रहते है
फिर भी न दुरी कम होती है न मज़िल पास होती है
कुछ करने की न किसी से डरने
ख्वाहिशे है जो कहती रहती है
दो कदम और चल ले क्योकि आगे बढ़ने से ही
नई सोच पल्लवित होती है
"Bin Ro"
बिन रोए हसीं की मस्ती बस यही गुनगुनाती रहती है
हर वक़्त रूह के आगे तम्मनाए बहती रहती है
हर दिन के उज्जाले से फिर भी वही भोर होती है
जिसे कल बिता चुकी है यादें फिर क्यों वो चोर होती है
एहसास देती रहती है पास होने का, अपना बनाने का
फिर भी न दुरी कम होती है न मज़िल पास होती हैI
जैसे रेगिस्तान में माटी बहती रहती है
उसे एहसास है की कुछ दुरी पे ही है मंज़िल मेरी
पर ये सिलसिला यूँही क्यों चलता रहता है !
बिना रुके बिना थके मंज़िल के इंतजार में बढ़ते रहते है
फिर भी न दुरी कम होती है न मज़िल पास होती है
कुछ करने की न किसी से डरने
ख्वाहिशे है जो कहती रहती है
दो कदम और चल ले क्योकि आगे बढ़ने से ही
नई सोच पल्लवित होती है
"Bin Ro"
बिन रोए हसीं की मस्ती बस यही गुनगुनाती रहती है
हर वक़्त रूह के आगे तम्मनाए बहती रहती है
हर दिन के उज्जाले से फिर भी वही भोर होती है
जिसे कल बिता चुकी है यादें फिर क्यों वो चोर होती है
एहसास देती रहती है पास होने का, अपना बनाने का
फिर भी न दुरी कम होती है न मज़िल पास होती हैI
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